विश्व किडनी दिवस: सुविधाओं की कमी के कारण बढ़ रहे हैं किडनी रोग के मरीज

विश्व किडनी दिवस: सुविधाओं की कमी के कारण बढ़ रहे हैं किडनी रोग के मरीज

सेहतराग टीम

आज विश्व किडनी दिवस है। इस साल भी किडनी दिवस के रूप हर जगह हर किसी के किडनी हेल्थ पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।  जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में ग्रामीण भारत में क्रोनिक किडनी रोग (CKD) के रोगियों की देखभाल पर प्रभाव डालने वाली बाधाओं और सुरक्षा की पहचान की।

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अध्ययन के अनुसार, रोगी की देखभाल में बाधा  प्रमुख कारण है रोग के बारे गलत ज्ञान होना और जागरूकता न होना। हेल्थ सिस्टम में बाधाओं की बात करें तो इनमें स्किल प्रोफेशनल की कमी, दवाओं की कमी और अस्पतालों में सहीं सुविधा के साथ विशेषज्ञों की कमी शामिल है।

बीएमसी नेफ्रोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन में बाधाओं और सुविधाओं के बताया गया। अध्ययन में भारत के ग्रामीण क्षेत्र में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को लेकर  मरीजों और हेल्थ केयर प्रोवाइडर की प्रतिक्रियाओं पर प्रकाश डाला गया। इसमें भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में CKD की देखभाल के सुविधाओं को बेहतर तरीके से पहुंचाने के लिए सुझाव दिया गया। जैसे- मरीजों और हेल्थ प्रोवाइडर्स को क्रोनिक किडनी रोग (CKD) के बारे जागरूक करना,  क्रोनिक किडनी रोग संबंधित सप्लाई नियम और बढ़िया स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को एक नियमनुसार कार्य देना।

ग्लोबल हेल्थ इंडिया के जॉर्ज इंस्टीट्यूट के कार्यकारी निदेशक और नेफ्रोलॉजी की इंटरनेशनल सोसायटी के प्रेसीडेंट प्रोफ़ेसर विवेकानंद झा ने कहा कि हमने ग्रामीण भारत में प्राथमिक स्तर पर  क्रोनिक किडनी रोग (CKD) की देखभाल के लिए कई बाधाओं की पहचान की है। जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। क्रोनिक किडनी रोग (CKD) स्क्रीनिंग कार्यक्रम और एजुकेशनल रूप जागरूक कर इसमें सुधार कर सकते हैं। हमें CKD की प्राथमिक देखभाल के लिए प्रशिक्षित कर्मचारी, सुविधाएं और दवाओं की उपलब्धता के साथ-साथ मूलभूत सुविधाओं के लिए बुनियादी ढांचें को मजबूत आवश्यकता है।

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भारत में लगभग   5 वयस्कों में से 1 वयस्क को क्रोनिक किडनी रोग (CKD) रोग है और इसके होने का सबसे बड़ा कारण डायबिटीज है।  गैर-फार्माकोलॉजिक और फार्माकोलॉजिक द्वारा शुरूआती दौर में पता लगाने और उपचार करने से इसके बढ़ने और लास्ट स्टेज में पहुंचने से रोका जा सकता है। 

शुरूआती दौर में मरीज में कोई लक्षण नहीं दिखाई  हैं। इसमें उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों की जांच करना आवशयक है जैसे- मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा से पीड़ित लोग। उन्हें जागरूक करने से इलाज में मदद मिलेगी।

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अध्ययन के अनुसार, भारत का हेल्थ सिस्टम वर्तमान में CKD को बढ़ने से रोकने में असमर्थ है, खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में। इसलिए जरूरी है कि कम्युनिटी हेल्थ वर्कर्स (ANM) और मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (ASHA) सहित  सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का कम्युनिटी और हेल्थ सेंटर के बीच लिंक बनाया जाए यानी इन्हें जोड़ा जाए।

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लगभग 30,000 की आबादी की सेवा करते हैं और स्टाफ में केवल एक डॉक्टर होता है। रिसर्च के अनुसार भारत में योग्य डॉक्टरों की संख्या कम है। क्योंकि वे  ग्रामीण क्षेत्रों काम करने  के लिए तैयार नहीं हैं। इसके अलावा, भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में नेफ्रोलॉजिस्ट बहुत कम आपूर्ति में हैं, क्योंकि अधिकांश अभ्यासकर्ता (1.3 अरब के देश में कुल 1850) मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों में केंद्रित हैं। हेल्थ केयर वर्कर्स की कमी और आसमान डिस्ट्रीब्यूशन CKD जैसी बीमारियों की सुविधाओं और देखभाल को रोक रखा है।

 

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